गीता का रहस्य
एक बार महात्मा गाँधी के पास एक व्यक्ति गीता का रहस्य जानने के लिए आया| उसने महात्मा गाँधी से गीता के रहस्य के बारे में पुछा| गाँधी जी उस समय फावड़े से आश्रम की भूमि खोद रहे थे| उन्होंने उस व्यक्ति को पास बिठाया और फिर से आश्रम की भूमि खोदने में लग गए| इसी तरह काफी समय हो गया लेकिन महात्मा गाँधी उस व्यक्ति से कुछ नहीं बोले| आखिर में अकेले बैठे-बैठे परेशान होकर वह व्यक्ति महात्मा गाँधी से बोला – “में इतनी दूर से आपकी ख्याति सुनकर गीता का मर्म जानने के लिए आपके पास आया था लेकिन आप तो केवल फावड़ा चलाने में लगे हुए हैं|
गाँधी जी ने उत्तर दिया – “भाई! में आपको गीता का रहस्य ही समझा रहा था|” महात्मा गाँधी की बात सुनकर वह व्यक्ति बोला – आप कहाँ समझा रहे था आप तो अभी तक एक शब्द भी नहीं बोले| गाँधी जी बोले – “बोलने की आवश्यकता नहीं है| गीता का मर्म यही है कि व्यक्ति को कर्मयोगी होना चाहिए| बस फल की आशा किए बगेर निरंतर कर्म करते चलो| यही गीता का मर्म है|”
गाँधी जी के इस उत्तर को सुनकर व्यक्ति को गीता का रहस्य समझ में आ गया|
तो दोस्तों इस कहानी का तर्क यही है, कि “व्यक्ति को फल की चिंता किए बगेर हमेशा कर्म करते रहना चाहिए|
गाँधी जी ने उत्तर दिया – “भाई! में आपको गीता का रहस्य ही समझा रहा था|” महात्मा गाँधी की बात सुनकर वह व्यक्ति बोला – आप कहाँ समझा रहे था आप तो अभी तक एक शब्द भी नहीं बोले| गाँधी जी बोले – “बोलने की आवश्यकता नहीं है| गीता का मर्म यही है कि व्यक्ति को कर्मयोगी होना चाहिए| बस फल की आशा किए बगेर निरंतर कर्म करते चलो| यही गीता का मर्म है|”
गाँधी जी के इस उत्तर को सुनकर व्यक्ति को गीता का रहस्य समझ में आ गया|
तो दोस्तों इस कहानी का तर्क यही है, कि “व्यक्ति को फल की चिंता किए बगेर हमेशा कर्म करते रहना चाहिए|
मुश्किल उर्दू शब्दों का आसान ट्रांसलेशन होसके तो और अच्छा हो जाए गा।
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