ठंडी रोटी

एक गाँव में एक लड़का अपने परिवार के साथ रहता था| सुयोग्य व् संस्कारी वह लड़का हमेशा अपनि माँ का ख्याल रखता था| बस एक बात थी जो उस लड़के में सबसे बुरी थी, वह यह की वह कुछ कमाता-धमाता नहीं था| लड़के के थोडा और बड़ा होने पर माँ ने उसका यह सोचकर विवाह कर दिया की विवाह के बाद जिम्मेदारियां आने पर लड़का खुद ही कमाने लगेगा| परन्तु विवाह के बाद भी लड़के की दिनचर्या में कोई फर्क नहीं पड़ा| अब भी लड़का दिन भर बस घर में बता रहता| माँ जब भी लड़के को रोटी परोसती थी, तब वह यही कहती थी, “बेटा, ठंडी रोटी खा लो|” लड़का रोज़ यही सोचता की माँ ऐसा क्यों कहती है! लेकिन फिर भी वह चुप रहता|

एक दिन माँ किसी काम से घर से बहार गई तो जाते समय अपनी बहु को लड़के को रोटी परोसने का कहकर गई और साथ में यह भी कहा की रोटी परोसते समय कहना की “ठंडी रोटी खा लो”| बहु ने ठीक वैसा ही किया, जब लड़का आया तो उसे रोटी परोसते समय ठंडी रोटी खाने को कहा| जैसे ही लड़के की पत्नी ने ठंडी रोटी खाने को कहा लड़के को गुस्सा आ गया| उसने सोचा पहले तो सिर्फ माँ ठंडी रोटी खाने कोकहती थी लेकिन अब तो मेरी पत्नी भी यह कहना सिख गई है|

उसने अपनी पत्नी से पुछा “आखिर रोटी गरम है, साग गरम है तो फिर तुम लोग मुझे ठंडी रोटी खाने को क्यों कहते हो? लड़के की पत्नी ने कहा, “,मुझे तो आपकी माताजी ने ऐसा कहने को कहा था, आप उनसे पूछिए आखिर वह आपको ऐसा क्यों कहती है| पत्नी की बात सुनकर लड़का गुस्सा हो गया और बोला, “अब जब तक माँ मुझे इस तरह से कहने का उत्तर नहीं देगी में खाना नहीं खाऊंगा|

शाम को जब माँ घर आई तो माँ ने बहु से पूछा कि क्या लड़के ने भोजन कर लिया| बहु नें लड़के के नाराज होने और भोजन ना करने की पूरी बात माँ को बता दी| थोड़ी देर बाद लड़के ने माँ से पुछा, “माँ! पहले तो सिर्फ तू मुझे ठंडी रोटी खाने का कहती थी लेकिन में तेरी बातों का बुरान्हीं मानता था लेकिन अब तो मेरी पत्नी ने भी मुझे यही कहा, आखिर तुम सब मुझे गरम रोटी को ठंडी रोटी खाने को क्यों कहते हो| माँ ने लड़के को पुछा, “बेटा..ठंडी रोटी किसे कहते हैं|” लड़के ने कहा “सुबह या कल की बनाई हुई रोटी ठंडी रोटी होती है”

लड़के की बात सुनकर माँ ने कहा, “बेटा! अब तू ही देख, तेरे पिताजी का कमाया गया जो धन है वो ठंडी रोटी है| गरम, ताज़ी रोटी तो तब होगी जब तू कमाकर लाएगा| माँ की बात सुनकर लड़का माँ की बात समझ गया और बोला. “माँ! अब में समझ गया हूँ की जो व्यक्ति खुद धन कमाने के लायाक्ल नहीं होता उसका कहीं भी सम्मान नहीं होता| आज से में खुद कमाकर लूँगा और पुरे परिवार को ताज़ी रोटी खिलाऊंगा|

तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि विवाह होने के बाद ठंडी रोटी नहीं खानी चाहिए, अपने कमाए हुए धन से रोटी खाना चाहिए| अब आप ही सोचिये  भगवान राम के वनवास के दौरान जब रावन माँ सीता को छल से ले गया| किसी भी रामायण में यह नहीं लिखा हुआ है की भगवान् राम ने अपने भाई भरत को यह समाचार दिया हो की “भरत, रावण मेरी पत्नी को छल पूर्वक ले गया है तुम आकर मेरी सहायता करो| क्यों की मर्यादापुरुषोत्तम राम यह समझते थे कि विवाह किया है तो अपनी स्त्री की रक्षा करना, अपने करताय का पालन करना उनका धर्म है| उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से पहले सुग्रीव की सहायता की उसके बाद सुग्रीव से सहायता मांग कर माँ सीता की रक्षा की| इसीलिए विवाह तभी करना चाहिए, जब स्त्री और बच्चों का पालन पोषण करने की क्षमता हो| अगर यह ताकत न हो तो विवाह नहीं करना चाहिए|

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